संविधान सभा (Constituent Assembly of India) |
1895 में भारत के लिए संविधान की मांग पहली बार बाल गंगाधर तिलक ने स्वराज विधेयक के जरिये राखी थी. इस मांग को 1916 में होम रुल लीग आन्दोलन में फिर से उठाया गया. 1922 में महत्रमा गांधी ने भी भारत के एक अलग संविधान की मांग को रखा. 1928 में साइमन कमीशन के आगे कांग्रेसियों और कई मुख्य नेताओ ने इस मांग को फिर से उठाया और 1928 की नेहरू रिपोर्ट भी इस मांग का एक नतीजा थी. 1935 तक, सविधान सभा की मांग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एजेंडे का एक हिस्सा बन चुकी थी. सी. राजगोपालाचारी ने 15 नवंबर 1939 को वयस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा की मांग उठाई और अंततः अगस्त 1940 में ब्रिटिश सरकार ने भारतियों के द्वारा उठाई जा रही इस मांग को स्वीकार कर लिया. 8 अगस्त 1940 को गवर्नर-जनरल की कार्यकारी परिषद के विस्तार और युद्ध सलाहकार परिषद की स्थापना के बारे में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो द्वारा एक बयान जारी किया गया. इस घटनाक्रम को बाद में अगस्त ऑफर के नाम से जाना गया. सन 1942 में, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स, ब्रिटिश सरकार के एक कैबिनेट मंत्री, एक स्वतंत्र संविधान के निर्माण के ब्रिटिश सरकार के प्रस्ताव के साथ आये. क्रिप्स प्रस्ताव को मुस्लिम लीग ने अस्वीकार कर दिया, जो भारत का दो अलग राष्ट्र में विभाजन चाहता था, और हर राष्ट्र के लिए अलग सविधान सभा. अंत में, 24 मार्च 1946 को ब्रिटिश सर्कार ने तीन कैबिनेट स्तर मंत्री भारत भेजे, जिसे कैबिनेट मीशन भी कहा जाता हैं. इस कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना को 16 मई 1946 को प्रकाशित किया, और इस योजना को कांग्रेस के साथ साथ मुस्लिम लीग ने भी मंजूरी दे दी.
Constituent Assembly of India |
नवंबर 1946 में कैबिनेट मिशन द्वारा बनाई गई योजना के तहत संविधान सभा का गठन किया गया. इसकी विशेषताएं थीं:
1. संविधान सभा की कुल शक्ति 389 थी. इनमें से 296 सीटें ब्रिटिश भारत को और 93 सीटें रियासतों को आवंटित की जानी थीं. ब्रिटिश भारत को आवंटित 296 सीटों में से, 292 सदस्यों को ग्यारह प्रांतों के गवर्नर और चार प्रांतों के मुख्य आयुक्तों को करना था.
2. प्रत्येक प्रांत और रियासत को उनकी आबादी के अनुपात में सीटें आवंटित की जानी थीं. मोटे तौर पर, हर दस लाख की आबादी के लिए एक सीट आवंटित की जानी थी.
3. प्रत्येक ब्रिटिश प्रांत को आवंटित सीटों को उनकी आबादी के अनुपात में तीन प्रमुख समुदायों -- मुस्लिम, सिख और सामान्य के बीच विभाजित किया जाना था.
4. प्रत्येक समुदाय के प्रतिनिधियों को प्रांतीय विधान सभा में उस समुदाय के सदस्यों द्वारा चुना जाना था और एकल हस्तांतरणीय वोट के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की विधि से मतदान होना था.
5. रियासतों के प्रतिनिधियों को रियासतों के प्रमुखों द्वारा नामित किया जाना था.
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि संविधान सभा को आंशिक रूप से निर्वाचित और आंशिक रूप से नामांकित निकाय होना था. इसके अलावा सदस्यों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा चुना जाना था, जो खुद एक सीमित मताधिकार पर चुने गए थे.
ब्रिटिश भारतीय प्रांतों को आवंटित 296 सीटों के लिए संविधान सभा के चुनाव जुलाई-अगस्त 1946 में हुए. इसमें से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 208 सीटें, मुस्लिम लीग ने 73 सीटें और बाकियों ने शेष 15 सीटें हासिल कीं. हालाँकि, रियासतों को आवंटित 93 सीटें नहीं भरी गईं क्योंकि उन्होंने संविधान सभा से दूर रहने का फैसला किया. यद्यपि भारत के लोगों द्वारा संविधान सभा का चुनाव सीधे वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं किया गया था, लेकिन सभा में भारतीय समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधि शामिल थे, हिंदू, मुस्लिम, सिख, पारसी, ईसाई, एंग्लो-इंडियन, दलित, और आदिवासी. इन सबके अलावा महिलाएं भी शामिल थी. महात्मा गांधी के अपवाद के साथ सभा में उस समय की सभी महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल थीं.
सविधान सभा की कार्यप्रणाली (Working of the Constituent Assembly)
9 दिसंबर, 1946 को संविधान सभा ने अपनी पहली बैठक आयोजित की. मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया और अपनी पाकिस्तान की मांग पर जोर दिया. इस तरह, पहली सभा में केवल 211 सदस्यों ने भाग लिया. भारतीय परम्परा का मान रखते हुए, सभा के सबसे बुज़ुर्ग सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष चुना गया. बाद में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद को विधानसभा के अध्यक्ष के रूप में चुना गया. इसी तरह, हरेन्द्र कुमार मुखर्जी, कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व उप-कुलपति, को सविधान सभा के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया. वही वीटी कृष्णामाचारी को सविधान सभा के दुसरे उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया. इस तरह हम कह सकते हैं कि सविधान सभा के दो उपाध्यक्ष थे. न्यायविद बी.एन. राऊ को सविधान सभा का सलाहकार नियुक्त किया गया; राऊ ने संविधान का मूल प्रारूप तैयार किया, और वे बाद में हेग में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (Permanent Court of International Justice, और World Court) में न्यायाधीश बने.
उद्देश्य संकल्प (Objective Resolution)
13 दिसंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने सविधान सभा में 'उद्देश्य संकल्प' आगे बढ़ाया. इसने संवैधानिक संरचना के मूल सिद्धांतों को सबके आगे रखा. इसमें कहा गया:
1. यह संविधान सभा भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य के रूप में घोषित करने और अपने भविष्य के शासन के लिए एक संविधान बनाने के लिए अपनी दृढ़ और पूर्ण संकल्प की घोषणा करती है.
2. ब्रिटिश भारत के राज्य, भारत में शामिल अन्य क्षेत्र और भारत के अन्य, ऐसे क्षेत्र जो भारतीय सीमओं से बाहर हैं और स्वतंत्र भारत में गठित होने के इच्छुक हैं. भारत उन सभी का एक संघ होगा.
3. उक्त सभी वर्णित क्षेत्र तथा उनकी सीमओं का निर्धारण सविधान सभा द्वारा किया जाएगा. इसके उपरांत यदि वे राज्य चाहेंगे तब उनकी आविष्ट शक्तिया उनमे निहित रहेंगी. उन्हें वे सब शक्तियां प्राप्त होंगी, जो राज्य को चलाने के लिए जरूरी होंगी, और संघीय ढाँचे को नुक्सान नहीं पहुचायेंगी.
4. संप्रभु स्वतंत्र भारत की सारी शक्ति और अधिकार, सरकार के सभी घटक भागों को भारत की जनता से शक्तिया प्राप्त होंगी.
5. भारत के सभी लोगों को न्यायिक, सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक सुरक्षा सुनिश्चित की जायेगी. उन्हें समान अवसर दिए जायेंगे. उनकी कानून के समक्ष समता होगी. उन्हें विचार, विश्वास, धर्म, अभिव्यक्ति, और भ्रमण की स्वतंत्रता मिलेगी. उन्हें अपना संगठन बनाने की स्वतंत्र होगी.
6. अल्पसंख्यक, आदिवासी और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी.
7. संघ की एकता बनाये रखने के लिए, इसके सभी क्षेत्र में किसी भी सभ्य देश की तरह सामाजिक और न्यायिक सुरुक्षा प्रदान की जाएगी.
8. इस प्राचीन भूमि को दुनिया में अपना सही और सम्मानित स्थान दिलाया जाएगा और शांति एव जन कल्याण के लिए पूरा प्रयास किया जाएगा. ”
इस प्रस्ताव को 22 जनवरी, 1947 को सविधान सभा द्वारा सर्वसम्मति से अपना लिया गया. इस प्रस्ताव ने भारतीय संविधान के स्वरुप को काफी हद्द तक प्रभावित किया. इसका संशोधित संस्करण वर्तमान संविधान की प्रस्तावना (Preamble) बनाता है.
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा परिवर्तन (Influence and Changes of Indian Independence Act 1947)
धीरे-धीरे, रियासत के प्रतिनिधि, जो संविधान सभा से दूर थे, इसमें शामिल हो गए. 28 अप्रैल, 1947 को छह राज्यों के प्रतिनिधि सविधान सभा का हिस्सा बने. 3 जून, 1947 को देश के विभाजन के लिए माउंटबेटन योजना की स्वीकृति के बाद, अधिकांश रियासतों के प्रतिनिधियों ने सविधान सभा में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. भारतीय डोमिनियन के हिस्से से मुस्लिम लीग के सदस्यों ने भी सविधान सभा में हिस्सा लेना शुरू किया.
1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने सविधान सभा की स्थिति में निम्नलिखित बदलाव किए:
1. इसने सभा को एक पूर्ण संप्रभु निकाय बनाया गया था.
2. इसने भारत के संबंध में ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को निरस्त या परिवर्तित करने के लिए सविधान सभा को सशक्त बनाया.
3. सविधान सभा एक विधायिका के रूप में करने लग गई. अगर आसान में कहा जाए, तो सविधान सभा को दो अलग-अलग काम सौंप दिए गए. पहला, स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान बनाना और दूसरा, देश के लिए सामान्य कानूनों को लागू करना. इन दोनों कामो को अलग-अलग दिनों में किया जाना था. इस प्रकार, सविधान सभा भारत की पहली संसद बन गई. जब भी सविधान सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में हुई तो इसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की और जब यह विधायिका के रूप में मिले, तब इसकी अध्यक्षता जीवी मावलंकर ने की. ऐसा 26 नवंबर, 1949 तक चलता रहा, जब तक भारतीय संविधान बनाने का कार्य पूरा नहीं हुआ था.
4. मुस्लिम लीग के सदस्य (पाकिस्तान में शामिल क्षेत्रों से) भारत की संविधान सभा से हट गए. नतीजतन, सविधान सभा की कुल ताकत घटकर 299 हो गई, जो मूल रूप से कैबिनेट मिशन योजना 1946 के तहत 389 तय की गई थी. भारतीय प्रांतों (पहले ब्रिटिश भारतीय प्रांतों) की ताकत 296 से 229 और रियासतों की ताकत 93 से 70 हो गई.
सविधान सभा के अन्य कार्य (Other Important Works of the Constituent Assembly)
संविधान बनाने और सामान्य कानूनों को लागू करने के अलावा, संविधान सभा ने निम्नलिखित कार्य भी किए:
1. मई 1949 में इसने राष्ट्रमंडल की भारत की सदस्यता को सत्यापित किया.
2. 22 जुलाई, 1947 को इसने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगा” को अपनाया.
3. 24 जनवरी, 1950 को इसने राष्ट्रगान “जन गन मन” को अपनाया.
4. 24 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय गीत “वन्दे मातरम” को अपनाया.
5. 24 जनवरी 1950 को इसने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना.
संविधान सभा के दो साल, 11 महीने और 18 दिनों के काल में कुल 11 सत्र हुए. भारत के संविधान निर्माताओ ने लगभग 60 देशों के सविधान का अध्यन किया. इसके प्रारूप पर 114 दिनों तक विचार किया गया.
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने अपना अंतिम सत्र आयोजित किया. हालांकि, इसका कार्य यही समाप्त नहीं हुआ, इसने 26 जनवरी, 1950 से 1952 में पहली चुनी गयी संसद तक, एक अंतरिम संसद के रूप में काम किया.
सविधान सभा की समितियां (Committees of the Constituent Assembly)
संविधान निर्माण के विभिन्न कार्यों से निपटने के लिए संविधान सभा ने कई समितियों नियुक्ति की. इनमें से आठ प्रमुख समितियाँ और अन्य छोटी समितियाँ थीं. इन समितियों और उनके अध्यक्षों के नाम नीचे दिए गए हैं:
प्रमुख समितियाँ (Major Committees)
1. प्रारूप समिति - डॉ. बीआर अंबेडकर
2. संघीय संविधान समिति - जवाहरलाल नेहरू
3. प्रांतीय संविधान समिति - सरदार पटेल
4. संघ शक्ति समिति - जवाहरलाल नेहरू
5. मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों एव जनजातीय और बहिष्कृत क्षेत्रों पर सलाहकार समिति (परामशदाता समिति) - सरदार पटेल. इस समिति में निम्नलिखित पाँच उप समितियाँ थीं:
(i) मौलिक अधिकार उप-समिति - जेबी कृपलानी
(ii) अल्पसंख्यक उप-समिति - एचसी मुखर्जी
(iii) उत्तर-पूर्व सीमांत जनजातीय क्षेत्र (असम से अन्य और आंशिक रूप से छोड़े गए क्षेत्र) उप-समिति - गोपीनाथ बारदोलोई
(iv) आंशिक रूप से छोड़े गए क्षेत्र (असम में अन्य) उप-समिति - ए वी ठक्कर
(v) उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर जनजातीय क्षेत्र उप-समिति
6. प्रक्रिया नियम समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
7. राज्यों के साथ वार्ता के लिए समिति - जवाहरलाल नेहरू
8. संचालन समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
छोटी समितियाँ (Small Committees)
1. वित्त और कर्मचारी समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
2. प्रत्यायक समिति - अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
3. सदन समिति - बी पट्टाभि सीतारमैय्या
4. कार्य सञ्चालन समिति - डॉ. केएम मुंशी
5. राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
6. संविधान सभा के कार्यों पर समिति - जीवी मावलंकर
7. सुप्रीम कोर्ट के लिए तदर्थ समिति - एस. वरदाचारी (ये सविधान सभा के सदस्य नहीं थे)
8. मुख्य आयुक्तों के प्रांतो की समिति - बी पट्टाभि सीतारमैय्या
9. संघीय संविधान के वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति - नलिनी रंजन सरकार (ये संविधान सभा सदस्य की नहीं थे)
10. भाषाई प्रांत आयोग - एसके डार (विधानसभा सदस्य नहीं)
11. प्रारूप संविधान की जांच के लिए विशेष समिति - जवाहरलाल नेहरू
12. प्रेस दीर्घा समिति - उषा नाथ सेन
13. नागरिकता पर तदर्थ समिति - एस वरदाचारी
प्रारूप समिति (Drafting Committee)
प्रारूप समिति, संविधान सभा की सभी समितियों में से सबसे महत्वपूर्ण समिति थी. इसका गठन 29 अगस्त, 1947 को किया गया. इसे भारत के लिए नए संविधान का प्रारूप तैयार करने का काम सौंपा गया था. इसके सात सदस्य शामिल थे. वो थे:
1. डॉ. बीआर अंबेडकर (अध्यक्ष)
2. एन गोपालस्वामी अय्यंगार
3. अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
4. डॉ. केएम मुंशी
5. सैयद मोहम्मद सादुल्लाह
6. एन माधव राऊ (उन्होंने बीएल मितर का स्थान लिया जिन्होंने अस्वस्थता के कारण इस्तीफा दे दिया)
7. टीटी कृष्णामाचारी (उन्होंने डीपी खेतान का स्थान लिया जिनकी मृत्यु 1948 में हुई)
सविधान समिति ने विभिन्न समितियों के प्रस्तावों को ध्यान में रखते हुए भारतीय के सविधान का पहला प्रारूप फरवरी 1948 में प्रकाशित किया. लगभग आठ महीनों की चर्चा और प्रस्तावित संशोधनों के बाद, सविधान का दूसरा प्रारूप अक्टूबर 1948 में प्रकाशित किया गया. प्रारूप समिति ने इस बार कुल छ: महीने से कम का वक़्त लिया. इस दौरान कुल 141 बैठक हुई. डॉ. बीआर अंबेडकर ने 4 नवंबर, 1948 को भारतीय सविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया. इसकी पहली रीडिंग 9 नवंबर, 1948 को समाप्त हुई. इसकी दूसरी रीडिंग 15 नवंबर, 1948 को शुरू हुई और 17 अक्टूबर, 1949 को समाप्त हुई. इस चरण के दौरान लगभग 7653 संशोधन प्रस्तावित किए गए, और जिनमे से 2473 संशोधन पर सविधान सभा में चर्चा हुई.
कुछ संशोधन के बाद का तीसरा वाचन 14 नवंबर, 1949 को शुरू हुआ. इस दौरान, डॉ. बीआर अंबेडकर ने संविधान को पारित किये जाने का प्रस्ताव रखा. इसे 26 नवंबर, 1949 को पारित किया गया. इस पर सविधान सभा के कुल 299 में से 284 उपस्थित सदस्यों ने हस्ताक्षर किया.
26 नवंबर, 1949 को भारत ने अपना सविधान अपनाया और 26 जनवरी, 1950 को यह सविधान सम्पूर्ण भारत में लागू कर दिया गया. हलांकि, यह भी पूरा सच नहीं हैं. नागरिकता, चुनाव, अस्थायी संसद, अस्थायी और परिवर्तनशील नियम और लघु शीर्षक से संबंधित प्रावधान, लेख 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 और 393, 26 नवंबर, 1949 को ही लागू चले थे. और संविधान के शेष प्रावधान (मुख्य भाग) 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ. 26 जनवरी को विशेष रूप से संविधान के 'आरंभ की तारीख' के रूप में चुना गया क्योंकि इस दिन 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने लाहौर सत्र (दिसंबर 1929) के संकल्प के बाद, पहली बार पूर्ण स्वराज दिवस मनाया था.
इस घटनाक्रम के साथ ही, 26 जनवरी, 1950 को भारत एक गणतंत्र बन गया. 1947 का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1935 का भारत सरकार अधिनियम, और बाकी सभी ब्रिटिश भारत के अधिनियमों को निरस्त कर दिया गया. इस प्रकार, भारत ब्रिटिश शासन के डोमिनियन स्टेटस को त्यागकर पूर्णत: आजाद हो गया.
सविधान सभा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य (the Important Facts of the Constituent Assembly)
1. हाथी को संविधान सभा के प्रतीक (मुहर) के रूप में अपनाया गया था.
2. सर बीएन राऊ को संविधान सभा के कानूनी सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया था.
3. एचवीआर अयंगर संविधान सभा के सचिव थे.
4. एलएन मुखर्जी संविधान सभा में संविधान के मुख्य ड्राफ्ट्समैन (प्रारूपकार) थे.
5. प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा भारतीय संविधान के सुलेखक थे. इनके द्वारा मूल संविधान को एक बहती इटैलिक शैली में हस्तलिखित किया गया था.
6. सविधान के मूल संस्करण को नंद लाल बोस और बेहर राममनोहर सिन्हा सहित शांति निकेतन के कलाकारों ने सुशोभित और सजाया था.
7. बेहर राममनोहर सिन्हा ने प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा द्वारा प्रस्तुत मूल प्रस्तावना को प्रकाशित, सुशोभित और अलंकृत किया.
8. मूल संविधान के हिंदी संस्करण का सुलेख वसंत कृष्ण वैद्य द्वारा किया गया था और नंद लाल बोस द्वारा भव्य रूप से सजाया गया और प्रकाशित किया गया था.
9. संविधान को बनाने में कुल 64 लाख रुपये का खर्चा हुआ.
नोट: सविधान सभा 24 जनवरी, 1950 को एक बार फिर से मिली, जब सदस्यों ने भारत के संविधान में अपने हस्ताक्षर किए.
सविधान सभा की आलोचना (Criticism of Constituent Assembly)
आलोचकों ने कई आधारों पर संविधान सभा की आलोचना की है. इनमे से कुछ आधार हैं.
यह एक प्रतिनिधि निकाय नहीं थी.
कई आलोचक कहते है कि संविधान सभा एक प्रतिनिधि निकाय नहीं थी. इसके सदस्य सीधे भारत के लोगों द्वारा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने नहीं गए थे.
यह एक संप्रभु निकाय नहीं थी.
आलोचकों का मानना हैं कि संविधान सभा एक संप्रभु निकाय भी नहीं थी क्योंकि यह ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों द्वारा बनाई गई थी. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने ब्रिटिश सरकार की अनुमति से अपने सत्र आयोजित किए.
अनावश्यक समय की खपत
आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा ने संविधान बनाने में लंबा समय लिया. उन्होंने कहा कि अमेरिकी संविधान के निर्माताओं को अपना काम पूरा करने में केवल चार महीने लगे. इस संदर्भ में, संविधान सभा के एक सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने इस समय की बर्बादी पर अपना विरोध दिखाने के लिए प्रारूप समिति का एक नया नाम गढ़ा. उन्होंने इसे "ड्रिफ्टिंग कमिटी" यानी बहती समिति कहा.
कांग्रेस का वर्चस्व
कई आलोचकों आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस पार्टी का संविधान सभा में वर्चस्व था. ब्रिटिश संवैधानिक विशेषज्ञ, ग्रैनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की: 'संविधान सभा एक-पक्षीय देश में एक पार्टी निकाय थी. सभा कांग्रेस थी और कांग्रेस भारत थी ’.
वकील और राजनीतिज्ञों का वर्चस्व
कई आलोचकों कहते है कि संविधान सभा में वकीलों और राजनेताओं का वर्चस्व था. वे इस बार पर जोर देते हैं कि समाज के अन्य वर्गों का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व नहीं किया गया.
हिंदुओं का प्रभुत्व
कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा एक हिंदू बहुल निकाय थी. लॉर्ड विस्काउंट साइमन ने इसे 'हिंदुओं का निकाय' कहा. वही विंस्टन चर्चिल इसे 'भारत में केवल एक प्रमुख समुदाय' का प्रतिनिधित्व मानते थे.
संविधान सभा के सत्र
पहला सत्र 9 — 23 दिसंबर, 1946
दूसरा सत्र 20 -- 25 जनवरी, 1947
तीसरा सत्र 28 अप्रैल -- 2 मई, 1947
चौथा सत्र 14–31 जुलाई, 1947
पांचवां सत्र 14-30 अगस्त, 1947
छठा सत्र 27 जनवरी, 1948
सातवां सत्र 4 नवंबर, 1948 –- 8 जनवरी, 1949
आठवां सत्र 16 मई -- 16 जून, 1949
नौवां सत्र 30 जुलाई -- 18 सितंबर, 1949
दसवां सत्र 6 -- 17, अक्टूबर, 1949
ग्यारहवां सत्र 14 -- 26 नवंबर, 1949
भारत की संविधान सभा में सीटों का आवंटन (1946)
1. ब्रिटिश भारतीय प्रांत (11) 292
2. रियासतें (भारतीय राज्य) 93
3. मुख्य आयुक्तों के प्रांत (4) 4
कुल 389