भारतीय परिषद अधिनियम (Indian Councils Act), 1892 |
1861 के भारतीय परिषद अधिनियम में कई कमियां महसूस के गयी. 1861 के अधिनियम के अंतर्गत गैर-सरकारी सदस्य या तो बड़े जमींदार होते थे या अवकाश प्राप्त अधिकारी या फिर भारत के राज परिवारों के सदस्य, किसी आम जन का सदस्य बनाना नामुमकिन था. इस बीच भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसकी स्थापना दिसम्बर 1885 में हो चुकी थी) विधान परिषद में अधिक भारतीय प्रतिनिधित्व की मांग करने लगी. वही दूसरी तरफ, यूरोपीय व्यापारियों ने भी भारत सरकार के इंग्लैंड में स्थित इंडिया आफिस से अधिक स्वतंत्रता की मांग रखी.
भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 की विशेषताएं
1. इस अधिनियम ने केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त (गैर-आधिकारिक) सदस्यों की संख्या में वृद्धि की, और उनके निर्वाचन का भी विशेष उल्लेख किया गया. खैर, परिषद में सरकारी अधिकारीयों का बहुमत बना रहा.
2. इसने विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि की और उन्हें बजट बनाने और कार्यपालिका को प्रश्नों को संबोधित करने की शक्ति प्रदान की.
3. इस अधिनियम ने विधान परिषद और बंगाल चैंबर ऑफ कॉमर्स में कुछ गैर-सरकारी सदस्यों के नामांकित करने की वाइसराय को शक्ति दी.
4. इसके अलावा प्रांतीय विधान परिषद में गवर्नर को जिला बोर्डों, नगर पालिकाओं, विश्वविद्यालयों, व्यापार संघों, और जमींदारों की सिफारिश के आधार पर कुछ गैर-आधिकारिक सीटों को भरने की शक्ति दी.
5. इस अधनियम के द्वारा व्यवस्थापिका सभाओं में भारतीय सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गई.
इस अधिनियम से भारतीयों को नाम मात्र का फायदा मिला, और यह सब एक मात्र दिखावा कहा जा सकता हैं. क्यूंकि सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर मत देने का अधिकार नहीं था और वे सहायक प्रश्न भी नहीं पूछ सकते थे.